श्री राम और महादेव का असीम प्रेम…. विपर्णा शर्मा

श्री विष्णु ने नारद जी से कहा है…..

कोउ नहीं शिव सामान प्रिय मोरें।
असि परतीति तजहु जनि भोरें।।
जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी।
सो न पाँव मुनि भगति हमारी।।
अर्थ…
भगवान नारद मुनि से बोले की हे नारद! महादेव के समान मुझे कोई भी प्रिय नहीं है…इस विश्वास को तुम भूलकर भी मत छोड़ना…और फिर कहते हैं कि हे मुनि! जब तक शिव किसी पर कृपा न करें तब तक वह मेरी भक्ति नहीं पाता…
और
यही बात पुनः उत्तर काण्ड में श्री राम खुद प्रजा को उपदेश देते हुए कहते हैं…
औरउ एक गुपुत मत सबहि कहउँ कर जोरि।
संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि।।
और
बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू।
राम भगत कर लच्छन एहू।।
और
सिवपदकमल जिन्हहिं रति नाहीं।
रामहिं ते सपनेहु न सोहाहीं।।
और
इच्छित फल बिनु सिव अवराधे।
लहिय न कोटि जोग जप साधे।।
और
संकर बिमुख भगति चह मोरी।
सो नारकी मूढ़ मति थोरी।
सिव द्रोही मम भगत कहावा।
सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा।।
और …
सिव सम को रघुपति ब्रतधारी।
बिनु अघ तजी सती असि नारी।।
पन करि रघुपति भगति देखाई।
को सिव सम रामहि प्रिय भाई।।
और
लिंग थापि बिधिवत करि पूजा।
सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।।
जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं।
ते तनु तजि मम लोक सिधारिहहिं।।
जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि।
सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि।।

मानस शुभप्रभात

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