दिल्ली: उपराष्ट्रपति ने जीवन शैली के कारण होने वाली बीमारियों के खिलाफ जन आंदोलन का आह्वान किया।

दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों के डॉक्टरों, अस्पतालों और चिकित्सा महाविद्यालयों से आह्वान किया कि वे विशेष रूप से युवाओं के बीच जागरूकता पैदा करके गैर- संक्रामक बीमारियों को रोकने के लिए एक अभियान शुरू करें।

आज मैसूर में जेएसएस एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च के 10वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए, श्री नायडू ने ने उन्हें अपने आस-पड़ोस में स्कूलों और कॉलेजों का दौरा करने और स्वस्थ जीवन शैली को बनाए रखने के लिए आवश्यक उपायों पर जागरूकता अभियान चलाने के लिए कहा।

उन्होंने भारत में गैर- संक्रामक बीमारियों (एनसीडी) की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में लगभग 61 प्रतिशत मौतें गैर- संक्रामक बीमारियों के कारण होती हैं। उन्होंने कहा कि भारत में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की शुरुआत बहुत चिंताजनक है।

गैर- संक्रामक बीमारियों की इस व्यापकता का मुकाबला करने के लिए, श्री नायडू ने स्वस्थ जीवन शैली और अच्छी आहार आदतों को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसमें कहा गया कि “अस्वास्थ्यकर भोजन और गतिहीन जीवन शैली एनसीडी में वृद्धि करने में योगदान दे रहे थे।”

उन्होंने शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में एनसीडी क्लीनिक स्थापित करने की आवश्यकता बताई और ऐसे क्लीनिकों की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए निजी क्षेत्र का आह्वान किया।

उपराष्ट्रपति ने युवाओं से खेल और योग में सक्रिय भाग लेकर शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने की अपील की। उन्होंने कहा कि योग एक प्राचीन भारतीय कला और विज्ञान है एवं इसका धर्म से कोई संबंध नहीं है।

उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए फिट इंडिया अभियान की ओर ध्यान दिलाते हुए युवाओं से अपील की कि वे इस मिशन को आगे बढ़ाएं और भारत को स्वस्थ एवं खुशहाल बनाने के लिए इसे आंदोलन का रूप दें।साथ ही उन्होंने यह भी कहा, “अस्वस्थ जनसंख्या वाला देश प्रगति नहीं कर सकता है।”

भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र के बारे में बात करते हुए, श्री नायडू ने कहा कि भारत ने स्वतंत्रता के बाद विभिन्न स्वास्थ्य संकेतकों जैसे जीवन प्रमाणिकता, मातृ मृत्यु दर आदि पर महत्वपूर्ण प्रगति की है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अभी भी कई मोर्चों जैसे कि योग्य चिकित्सकों की कमी और परिणामी निम्न चिकित्सक-रोगी अनुपात, अत्यधिक खर्च, ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और अपर्याप्त निवारक तंत्र इत्यादि, पर बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

उपराष्ट्रपति ने प्रत्येक जिले में एक मेडिकल कॉलेज स्थापित करने के केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत किया, उपराष्ट्रपति ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में पेशेवरों की कमी को दूर करने के लिए और अधिक मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की आवश्यकता बहुत पहले से महसूस की जा रही थी।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि नवगठित राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) सही दिशा में उठाया गया एक कदम है और आशा व्यक्त की है कि आयोग एक ऐसा चिकित्सा शिक्षा प्रणाली प्रदान करेगा जो समावेशी, सस्ती और प्रत्येक जगह पर्याप्त और उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा पेशेवरों की उपलब्धता सुनिश्चित करा सके।

डॉक्टर-रोगी के संबंध में मानवीय स्पर्श के क्रमिक क्षरण पर चिंता व्यक्त करते हुए, श्री नायडू ने कहा कि “डॉक्टर और उसके रोगी के बीच एक प्रभावी संचार होना चाहिए और यह हमेशा सहानुभूति एवं मानवतावाद के साथ व्यक्त किया जाना चाहिए।”

साथ ही उन्होंने यह भी कहा, ‘मेडिकल पाठ्यक्रम में जैव-नैतिकता, मानवीयता और संचार कौशल जैसे विषय भी शामिल किए जाने चाहिए।’

पुरानी कहावत ‘इलाज से बेहतर रोकथाम है’ का उल्लेख करते हुए श्री नायडू ने चिकित्सा शिक्षा के निवारक पहलुओं को महत्व देने की आवश्यकता व्यक्त की।

उपराष्ट्रपति ने श्री सुत्तुर मठ जेएसएस एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च के सामाजिक उत्तरदायित्व एवं किए गए कार्य की सराहना की और युवाओं से जातिवाद, लिंग और सामाजिक भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन के लिए काम करने का आह्वान भी किया।

इस कार्यक्रम में श्री शिवरात्रि देशिकेंद्र महास्वामीजी, श्री वी. सोमन्ना, आवास मंत्री, कर्नाटक सरकार के साथ-साथ जेएसएसएएचआईआर के संकाय सदस्यों और छात्रों ने भाग लिया।

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